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परम पूज्या जिनधर्म प्रभाविका मानव रत्न आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माता जी की मंगल प्रेरणा एवं आशीर्वाद से विगत कई वर्षों से भारत वर्ष के विभिन्न स्थलों पर साधु सेवा के कार्य निरन्तर चल रहे है, तीर्थराज सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेद शिखर जी, सिद्धक्षेत्र श्री सोनागिर जी, अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी, एवं महानगर दिल्ली सहित अनेकानेक स्थलों पर त्यागीवृत्तियों के आहार-विहार, पिच्छि-कमण्डल, औषधि, शास्त्र आदि की व्यवस्था निर्बाध रूप से चल रही है।
पूज्य माता जी की प्रेरणा से संचालित संस्थाओं के माध्यम से सम्पूर्ण भारतवर्ष में जिनधर्म प्रभावना हेतु वृद्ध विधान - कल्पद्रुम विधान, सर्वतोभद्र विधान, सिद्धचक - विधान, भक्तामर विधान, कल्याणमंदिर विधान, विषापहार विधानादि धार्मिक अनुष्ठानों के साथ नव पीढ़ी को संस्कारित करने हेतु 'धर्माकरम् संस्कार शिविरों का आयोजन किया जाता है, जिनके माध्यम से जैन समाज लाभान्वित हो रही है।
निर्धन बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, निर्धन असहाय परिवारों के लिए पेंशन गरीब बच्चियों के विवाह में अर्थ सहयोग, युवक नव पीढ़ी को स्वावलम्बी बनाने हेतु गृह उद्योग उपलब्ध करवाना संस्था के उद्देश्य है, जिस पर एकजुट हो पूरा सृष्टि मंगलम परिवार तन-मन-धन से अपना सहयोग प्रदान करता आया है एवं आगे भी करता रहेगा, आप भी इस पुनीत कार्य से जुड़े एवं सृष्टि मंगलम परिवार में शामिल होकर साधु सेवा - जन सेवा के इस महानतम कार्यो में अपनी सहभागिता प्रदान कर गौरान्वित एवं लाभान्वित होवें ॥
जैन समाज के साथ-2 जैनेतर समाज कल्याणार्थ भी माता जी की आत्मिक इच्छा के अनुरूप संस्था के पदाधिकारीगण एवं गुरु माँ भक्तों के द्वारा समय-समय पर ब्लड डोनेशन कैम्प, वस्त्र वितरण, ड्राई साईकिल, सिलाई मशीन, कान की मशीन, कम्बल, साड़ी इत्यादि वितरण के आयोजन एवं निशुल्क जाँच शिविर, चिकित्सा शिविरों के आयोजन प्राय: होते रहते है।
(सृष्टि का अलंकरण सृष्टि का करती दुखहरण गुरु मां सृष्टि भूषण) साधना और मंगल भावना की संपूर्णता का नाम है 60 वर्षीय पूज्य आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी जी, पूज्य माता जी ने भारतवर्ष के मध्य प्रदेश प्रांत की रत्नमय मुंगावली की धरा पर 23 मार्च सन 1964 चैत्र शुक्ला नवमी को श्रद्धेय पिताश्री कपूर चंद जी एवं माता श्री पदमा देवी की बगिया में जन्म लिया नामकरण हुआ। मानवता के दिव्य आलोक से परिपूर्ण संयम की मंगल मनीषा सुलोचना यह परिवार की तीसरी संतान थी। इसे विधि का विधान कहे की इनसे पूर्व जन्मे दोनों ही पुत्र अल्प समय में ही इस मनुष्य पर्याय से पलायन कर गए। दोनों संतानों के चले जाने के बाद आपका जन्म हुआ।
िशेष बात
आप हर मुश्किल से मुश्किल कार्य को करने में विश्वास रखती थी, और उसको पूरा भी करती थी।जीवो के प्रति आपके हृदय में कर्ण का शुरू से ही बैठा था। जब कभी किसी को देखती तो आशय से देखती थी। सहायता के लिए आगे बढ़ जाती थी। शायद यही सब बातें आपको बचपन से सबसे अलग करती थी। यह आप मे विशेषता रही।
बलि प्रथा को बंद कराने में अहम योगदान
आपने सदियों से चल रही शादी विवाह में बलि की प्रथा को आपने अपने प्रयासों के बल बंद कराया। आपका अहम योगदान रहा।
"साधु और सैनिक धरती पर पैदा नहीं होते वे तो अवतरित होते है ।"
चन्द्रप्रभु मांगलिक भवन , तिलक नगर , इंदौर
9425641951, 8770202114